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       जिंदगी जिंदगी फूल- सी है, कुदरत की गोद में खिलती है, मुस्कराती है, खुशबू से फिजा को महकाती है, और एक दिन बिखरकर, बसुन्धरा की ग...

सूर्यनमस्कार

सूर्य 

सूर्य ऊर्जा का अक्षय स्रोत है।  पृथ्वी पर जीवन की कल्पना बिना सूर्य के नहीं की जा सकती। सूर्य से ऊष्मा, प्रकाश तो मिलता ही है इसके अतिरिक्त इसकी किरणों में औषधीय  गुण विद्यमान है।  विभिन्न प्रकार के जीवों, बनस्पतियों के  उदभव और विकास में सूर्य सहायक है। यह पृथ्वी के जलवायु को प्रभावित करता है।  मौसम का मिजाज सूर्य की वजह से बदलता रहता है। वर्षा सूर्य पर ही निर्भर है।  वर्षा ही पानी का मुख्य स्रोत है।  नदी, तालाब, कुआँ,नलकूप सब वर्षा पर ही आश्रित हैं।  

सूर्य मनुष्य के शारीरिक , मानसिक तथा भावनात्मक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। सूर्य की किरणें  विटामिन डी के मुख्य स्रोत है।  विटामिन डी शरीर के विभिन्न चयापचय क्रियाओं के लिए आवश्यक है।  प्रातःकाल सूर्योदय के समय रक्ताभ सूर्य की रश्मियों का सेवन शरीर  और मन को स्वस्थ बनाता है , ताजगी प्रदान करता है , बुध्दि को प्रखर और भावनाओं को संतुलित करता है।  प्राकृतिक चिकित्सा में धूप स्नान, सूर्य की किरणों से तैयार जल का प्रयोग सर्वविदित है।  रंग चिकित्सा इसी पर आधारित है।  मनुष्य के शरीर में रंगों का प्रभाव किसी से छिपा नहीं है।  कई रोग रंग चिकित्सा के माध्यम से उपचारित किए जा रहे हैं।  पृथ्वी का कण-कण सूर्य की ऊर्जा से ऊर्जित होते हैं। सूर्य के सकारात्मक प्रभावों का उल्लेख यहाँ प्रासांगिक नहीं है।  सारांशतः सूर्य की महिमा अनंत है। 

सूर्यनमस्कार 

हमारे मनीषियों ने सूर्य के  महत्त्व को हृदयंगम किया , शोध किया  और सूर्य के औषधीय गुणों  का जीवन में उपयोग करने के वैज्ञानिक उपायों का अनुसंधान किया , उन्ही अनुसंधानों में एक अनुसंधान  है - सूर्य नमस्कार।  सूर्यनमस्कार आसनों,मन्त्रों और योग का अदभुत संगम है।  इसमें डुबकी लगाने वाला  रोगों से मुक्त तो होता ही है , वह ऊर्जावान ,स्फूर्तिवान और बुध्दिमान होता है।  मेधा शक्ति बढ़ती है।  शरीर सुदृढ़ और मजबूत बनता है। मानसिक तथा भावनात्मक रूप से वह स्वस्थ होता है।  पाचन क्रिया में सुधार होता है।

सूर्यनमस्कार का आध्यात्मिक पक्ष जो अत्यंत सबल है ,इसकी चर्चा बहुत ही कम की जाती है।  जब हम सूर्य नमस्कार निर्धारित श्वास -प्रश्वास और मन्त्रों के साथ शरीर में स्थित चक्रों पर ध्यान करते हुए करते हैं तो हमारी आतंरिक ऊर्जा ऊर्ध्वानुमुखी  होती है।  यह स्वानुभूति का विषय है।  करिए और इसके इस पक्ष  का आनंद लीजिए।  

आवश्यक बातें -

  1. सूर्य नमस्कार सूर्योदय के समय पूर्वाभिमुख होकर करना उत्तम होता है।  
  2. सूर्य नमस्कार शौचादिक्रिया से निवृत्त होकर  खाली पेट किया जाना चाहिए। जल का सेवन किया जा सकता है। 
  3. सूर्य नमस्कार दरी या मैट बिछाकर खुले स्थान में करना उत्तम और गुणकारी होता है, जब शरीर पर सूर्य की रक्ताभ किरणें पड़ . रही हों।  
  4. अशक्त और अस्थिरोग से पीड़ित व्यक्ति अपनी क्षमता के अनुसार करें। 
  5. ब्लड प्रेशर एवं ह्रदय रोग से सम्बंधित साधक अपनी शारीरिक क्षमता के अनुसार योग परामर्शक की निगरानी में करें।   
  6. कमर दर्द  से पीड़ित व्यक्ति को सामने नहीं झुकना चाहिए , इसलिए सामने झुकने वाले स्थितियों में कम समय देना उचित होता है।  
  7. सूर्य नमस्कार की प्रत्येक स्थितियों के लिए निर्धारित श्वास प्रश्वास को ध्यान में रखकर क्रिया करना  गुणकारी होता है। 
  8. सामान्यतः सामने झुकने पर श्वास बाहर छोड़ना होता है एवं पीछे की ओर झुकने पर श्वास अंदर लेना होता है। 

सूर्य नमस्कार की विभिन्न स्थितियाँ 

स्थिति 1 
प्रार्थना की मुद्रा 
विधि - दोनों हाथ प्रार्थना की मुद्रा में हों , दोनों पैर के पंजे आपस में मिले हुए हों , पूरी तरह सीधे खड़े हों।   श्वास-प्रश्वास सामान्य रखें   ध्यान अनाहत चक्र (ह्रदय स्थल) पर हो , मानसिक या वाचिक रूप से ॐ मित्राय नमः का उच्चारण (जाप) करें।  थोड़ी देर रुकें। 
लाभ - रक्त संचार को सामान्य बनाता है।  मन को शांत करता है , अन्य स्थितियों  के लिए शरीर को तैयार करता है 
स्थिति 2 
हस्तोत्तानासन 
विधि - श्वास अंदर भरते हुए दोनों हाथों को ऊपर उठाएं , दोनों भुजाएँ कानों को स्पर्श करें, यथाशक्ति धड़ ,दोनों हाथ और भुजाओं को पीछे की ओर झुकाएं।  अपना सम्पूर्ण ध्यान विशुध्दि चक्र (कंठ) पर रखें।  अंतर्मन में  रवये  नमः का जाप करें , कुछ सेकण्ड रुकें।  
लाभ - पाचन क्रिया में सुधार होता है। पेट की चर्बी घटती है।  भुजा और कंधे  मजबूत होते हैं।  
स्थिति 3 
पादहस्तासन 
विधि - श्वास बाहर करते हुए सामने की ओर झुकें , दोनों हाथों के पंजों को दोनों पैर  के पंजों के बगल में जमीन पर रखें. मस्तक को घुटने से स्पर्श करें। पैरों को सीधा रखें ,पैर घुटनों से मुड़ना नहीं चाहिए।  ध्यान स्वाधिष्ठान चक्र पर रखें।  ॐ सूर्याय नमः मन्त्र का उच्चारण करें।  
लाभ - उदर संबंधी विकारो को दूर करता है।  पेट की चर्बी को घटाता  है।  कब्ज दूर होता है।  रीढ़ की स्नायुओं को लचीला बनाता है।  रक्त संचार को मस्तिष्क में बढ़ाता है।  
स्थिति 4 
अश्व सञ्चालनासन 
विधि - श्वास अंदर भरते हुए बाएं पैर के घुटने को जमीन से लगाते हुए पैर  को पीछे फैलाएँ , पंजों का पृष्ठ भाग जमीन को स्पर्श करे।  दाएं पैर को घुटने से मोड़ें ,दाएं जंघे को पैर की पिंडलियों से सटाएं। हाथ के पंजों की स्थिति न बदलें , हाथ की भुजाएं सीधी हों।  हाथों के पंजे और दाएँ पैर का पंजा एक सीध में हो।  सिर को ऊपर उठाइये , कमर को धनुषाकार बनाइये और दृष्टि ऊपर की ओर रखें।  
ध्यान आज्ञाचक्र पर रखें।  ॐ भानवे नमः मन्त्र का उच्चारण करें।  
लाभ- पैरों और पिंडलियों को मजबूत बनाता  है।  उदर के अंगों को सक्रिय बनाता है।  
स्थिति 5 
पर्वतासन 
विधि - श्वास बाहर करते हुए  दाएँ पैर को पीछे ले जाइये।  दोनों पैरों के तलवों को जमीन में स्थापित कर कमर और नितंबों को  अधिकतम ऊपर उठाइये , एड़ियाँ परस्पर मिली हों।  दृष्टि नाभि पर रखें।  
ध्यान विशुध्दि चक्र पर रखते  हुए ॐ खगाय नमः मन्त्र का उच्चारण करें।  
लाभ - मस्तिष्क को क्रियाशील बनाता है।  पैर को मजबूत बनाता है। रीढ़ की हड्डियों को लचीला बनाता है।  
स्थिति -6 
अष्टाङ्ग नमस्कार 
विधि - श्वास लेते हुए घुटनों को जमीन से स्पर्श करें।  पंजों का पृष्ठ भागा जमीन पर स्पर्श करें. तलवों की स्थिति आसमान की ओर।  छाती को जमीन से स्पर्श कराएँ।  आईएएस प्रकार दोनों हाथ के पंजे, वक्षस्थल,, दोनों पैर के पंजों का पृष्ठ भाग और ठोडी ( ठुड्डी)  जमीन को स्पर्श करती हुई।  पेट और कमर का भाग ऊपर।  श्वास बाहर छोड़कर रोके रहें ,अपनी शारीरिक क्षमता के अनुसार।  
ध्यान- मणिपुर चक्र पर।  ॐ पूष्णे नमः मन्त्र का उच्चारण करें।  
लाभ - वक्षस्थल शक्ति विकासक।  भुजाओं एवं पैर की मांसपेशियों को मजबूत बनाता है।  
स्थिति 7 
भुजंगासन 
विधि - श्वास अंदर भरते हुए हाथ के पंजों को यथास्थिति रखते हुए  हाथों को सीधा करें।  कमर से ऊपर के भाग को ऊपर उठाएँ। कमर को धनुहाकर बनाएं।  सिर और गर्दन को ऊपर पीछे की ओर झुकाएँ।  नजरें आसमान की ओर रखें।  
ध्यान स्वाधिष्ठान चक्र पर स्थापित करते हुए ॐ हिरण्यगर्भाय नमः मन्त्र का जाप करें।  
लाभ - अमाशय में रक्त संचार को बढ़ाता है।  कब्ज एवं बदहजमी दूर कर पाचन क्रिया को सुधारता है।  गर्दन एवं रीढ़ की हड्डियों को लचीला बनाता है।  मेरुदंड सम्बन्धी रोगों में लाभकारी है। 
स्थिति -8 
पर्वतासन 
विधि - श्वास बाहर करते हुए  दाएँ पैर को पीछे ले जाइये।  दोनों पैरों के तलवों को जमीन में स्थापित कर कमर और नितंबों को  अधिकतम ऊपर उठाइये , एड़ियाँ परस्पर मिली हों।  दृष्टि नाभि पर रखें।  
ध्यान विशुध्दि चक्र पर करते हुए ॐ मरीचये नमः मन्त्र का उच्चारण करें।  
लाभ - मस्तिष्क को क्रियाशील बनाता है।  पैर को मजबूत बनाता है। रीढ़ की हड्डियों को लचीला बनाता है।  
स्थिति 9 
अश्व सञ्चालनासन 
विधि - श्वास अंदर भरते हुए बाएं पैर के घुटने को जमीन से लगाते हुए पैर  को पीछे फैलाएँ , पंजों का पृष्ठ भाग जमीन को स्पर्श करे।  दाएं पैर को घुटने से मोड़ें ,दाएं जंघे को पैर की पिंडलियों से सटाएं। हाथ के पंजों की स्थिति न बदलें , हाथ की भुजाएं सीधी हों।  हाथों के पंजे और दाएँ पैर का पंजा एक सीध में हो।  सिर को ऊपर उठाइये , कमर को धनुषाकार बनाइये और दृष्टि ऊपर की ओर रखें।  
ध्यान आज्ञाचक्र पर रखें।  ॐ आदित्याय  नमः मन्त्र का उच्चारण करें।  
लाभ- पैरों और पिंडलियों को मजबूत बनाता  है।  उदर के अंगों को सक्रिय बनाता है।
स्थिति 10 
पादहस्तासन 
विधि - श्वास बाहर करते हुए सामने की ओर झुकें , दोनों हाथों के पंजों को दोनों पैर  के पंजों के बगल में जमीन पर रखें. मस्तक को घुटने से स्पर्श करें। पैरों को सीधा रखें ,पैर घुटनों से मुड़ना नहीं चाहिए।  
ध्यान स्वाधिष्ठान चक्र पर रखें।  ॐ सवित्रे  नमः मन्त्र का उच्चारण करें।  
लाभ - उदर संबंधी विकारो को दूर करता है।  पेट की चर्बी को घटाता  है।  कब्ज दूर होता है।  रीढ़ की स्नायुओं को लचीला बनाता है।  रक्त संचार को मस्तिष्क में बढ़ाता है।  
स्थिति 11 
हस्तोत्तानासन 
विधि - श्वास अंदर भरते हुए दोनों हाथों को ऊपर उठाएं , दोनों भुजाएँ कानों को स्पर्श करें, यथाशक्ति धड़ ,दोनों हाथ और भुजाओं को पीछे की ओर झुकाएं।  
अपना सम्पूर्ण ध्यान विशुध्दि चक्र (कंठ) पर रखें।  अंतर्मन में   अर्काय नमः का जाप करें , कुछ सेकण्ड रुकें।  
लाभ - पाचन क्रिया में सुधार होता है। पेट की चर्बी घटती है।  भुजा और कंधे  मजबूत होते हैं।  
स्थिति 12 
प्रार्थना की मुद्रा 
विधि - दोनों हाथ प्रार्थना की मुद्रा में हों , दोनों पैर के पंजे आपस में मिले हुए हों , पूरी तरह सीधे खड़े हों। शरीर शिथिल और तनाव मुक्त रखें।   श्वास-प्रश्वास सामान्य रखें   ध्यान अनाहत चक्र (ह्रदय स्थल) पर हो , मानसिक या वाचिक रूप से ॐ भास्कराय  नमः का उच्चारण (जाप) करें।  थोड़ी देर रुकें। 
लाभ - रक्त संचार को सामान्य बनाता है।  मन को शांत करता है।   
विशेष- कुछ योगाचार्यों के द्वारा स्थिति 8 में दण्डासन कराया जाता है। 


  

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