योग क्यों करें?
समाज में योग के संबन्ध में कई भ्रांतियां हैं। लोगो की अलग- धारणाएं हैं। एक वर्ग ऐसा है जिसका मानना है, योग करना साधु- संतों का काम है। यह वन में जाकर की जाने वाली एक कठिन साधना है। जो न हमारे वश की है, ना ही हमारे लिए उपयोगी है।
एक वर्ग ऐसा भी है, जो इसे मात्र बीमार और कमजोर लोगों के लिए उपयोगी और आवश्यक मानता है। उनका कहना है - "योग वे करें जो बीमार हैं हमें कोई बीमारी है नही , हम योग क्यों करें?"
इसी प्रकार शारीरिक श्रम करने वाले इसे अपने लिए अनुपयोगी मानते हैं। उनका तर्क होता है, "हम वैसे ही इतना परिश्रम कर लेते हैं,अलग से योग क्यों करें? "
एक वर्ग है ऊषापान करने वालों का ( मॉर्निंग वॉकर), इनका भी तर्क शानदार होता है- "हम सुबह उठकर पैदल चल लेते हैं, पर्याप्त कसरत हो जाती है, अलग से योग करके समय क्यों नष्ट करें?"
इसी प्रकार समाज के हर वर्ग का योग ना कर पाने के अपने-अपने तर्क हैं। कोई समय ना मिलने का बहाना बनाते हैं तो कोई देर रात सोने के कारण सुबह ना उठ पाने का।
एक वर्ग और है , वह है - हमारे बच्चे, आज के विद्यार्थियों का । इनके भी योग ना करने के अपने कारण हैं- "देर रात तक पढ़ना और सुबह उठकर ट्यूसन चले जाना। योग करें तो कितने समय करें और करें भी तो क्यों करें ?"
मानव का स्वभाव है, वह वही काम करना चाहता है, जिससे उसे आनन्द प्राप्त होता है या कुछ मिलने वाला होता है। वह बिना लाभ के कोई भी काम करना पसन्द नहीं करता । इसमें मुझे कोई दोष नजर नहीं आता। इसका अर्थ यह नहीं है कि उनके तर्क गलत है या सच हैं। बल्कि इन तर्कों के पीछे छिपे कारणों की पहचान करने और उनके समाधान के उपाय तलाशने की आवश्यकता है।
वास्तव में योग एक जीवन शैली है। स्वस्थ और सुखमय जीवन जीने की कला है। योग को किस प्रकार अपने जीवन में उतारें और अपने जीवन को सुखमय, निरोगमय, और सुंदर बनाएं। अतः योग प्रकृति का अनुपम उपहार है।
योग बच्चों के लिए किस प्रकार उपयोगी है इस विषय पर विचार करते हैं। बच्चे दिन भर सक्रिय रहते हैं । कठिन मानसिक और शारीरिक परिश्रम करते हैं। उन्हें सामान्य व्यक्ति की तुलना में अधिक ऊर्जा चाहिए। यह ऊर्जा उन्हें भोजन से प्राप्त होती है।
हमारी ऊर्जा का अधिकांश भाग अनावश्यक चल रहे विचारों में खर्च हो जाता है। इसे इस तरह से समझें कि मोबाईल में आंतरिक रूप से चल रहे अनावश्यक स्वसंचालित एप्प्स मोबाईल की बैटरी को चट कर जाते हैं। ठीक उसी प्रकार हमारे मस्तिष्क में चल रहे विचारों में हमारी ऊर्जा खपत होती रहती है। हम जल्दी थकान अनुभव करने लगते हैं। मन लगाकर पढाई नहीं कर पाते।
अतः इस अंतः प्रवाहित विचारों से मुक्ति का एक मात्र उपाय है -योग को अपनी दिनचर्या में शामिल कर लेना। जब हम योग की विधाओं जैसे- सूर्य नमस्कार, प्राणायाम, ध्यान एवं शिथिलीकरण आदि का प्रयोग करते हैं। इससे मस्तिष्क के कुविचार रुपी खरपतवार नष्ट होने लगते हैं। मन- मस्तिष्क शुध्द और स्वस्थ होने लगता है।
बच्चों की एक बड़ी समस्या होती है, याद की गई बात को जल्दी भूल जाना या याद ना कर पाना। दूसरे शब्दों में इसे स्मृतिदौर्बल्य भी कहा जाता है। यह एक प्रकार की बीमारी ही है। स्वस्थ स्मृति के बिना अच्छे अंक ला पाना संभव नहीं है। स्मृति विकास हेतु योग से अच्छा समाधान कोई नहीं है। स्मृति विकासक योगिक अभ्यासों में प्राणायाम में भस्त्रिका, अनुलोम- विलोम, भ्रामरी या महाप्राण ध्वनि अत्यंत उपयोगी हैं। इसके अतिरिक्त ध्यान का 10 मिनट प्रति दिन अभ्यास करना भी लाभकारी है। इसके साथ- साथ रात को जल्दी सोना सुबह जल्दी उठना। सुबह खाली पेट 5-6 बादामों का सेवन भी किया जा सकता है।
बच्चों की एक समस्या और होती है, जानते हुए भी,गलत हो जाने की भय से अपनी बात न रख पाना। इसे आत्मविश्वास में कमी होना कहा जाता है। योग में इसका भी समाधान है। कायोत्सर्ग एवंअभय की अनुप्रेक्षा , महाप्राण ध्वनि और उद गीथ प्राणायाम में से कोई भी अभ्यास करें और उक्त समस्या से छुटकारा पाएं।
कुछ बच्चे जब पढ़ने बैठते हैं तो उनका मन नहीं लगता । जल्दी नींद सी आने लगती है। 10 मिनट एकाग्र होकर बैठ नहीं पाते। इसे ध्यान भंग या एकाग्रता में कमी कहा जाता है । वास्तव में तन्द्रा की स्थिति में पढ़ा गया पाठ याद नहीं होता । समय और शक्ति दोनों नष्ट होती रहती है।
इस विकट समस्या का समाधान योग में है।शिथिलीकरण और प्राणायाम तथा ध्यान की विधियों का अभ्यास कर इस समस्या से भी निजात पा सकते हैं। जब हम योगिक अभ्यास करते हैं उस समय ब्रह्माण्डीय ऊर्जा हमारे शरीर में प्रविष्ट होकर हमें ऊर्जावान बना देती है।
मैंने यह अनुभव किया है कि समाज का ऐसा कोई वर्ग नहीं है जो योग की महिमा को न जानता हो। अर्थात योग से होने वाले लाभों से सभी परिचित हैं। फिर भी कुछ लोग योग नहीं करते। ऐसा क्यों ? इसका उल्लेख लेख के प्रारंभ में किया गया है। वास्तव में इन सबके अंदर एक समस्या है- वह है , समय का नियोजन । दिनचर्या का अस्त-व्यस्त होंना। यदि इसे व्यवस्थित कर लिया जाय तो स्वमेव कई समस्याओं का समाधान हो जाता है।
नीलेश कुमार शुक्ल
शिक्षक शा. उत्कृष्ट उ. मा. वि. रघुराज क्र. 2 शहडोल