विशेष

जिंदगी

       जिंदगी जिंदगी फूल- सी है, कुदरत की गोद में खिलती है, मुस्कराती है, खुशबू से फिजा को महकाती है, और एक दिन बिखरकर, बसुन्धरा की ग...

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Thursday, February 16, 2017

गरबा

गुजरात की पहचान है गरबा ,
लोकगीत की शान है गरबा 
नृत्य की जान है गरबा 
मन मुग्ध कारी नृत्यगान है गरबा । 

प्रेरक

कर्म 

जन्म सब लेते हैं,
कर्म भी सब करते हैं ,
किन्तु कुछ खास होते हैं ,
जो अपने कर्मों से
इतिहास बनाया करते हैं । 


कर्म-पथ 

कर्म पथ सरल नहीं,
यह मैंने अनुभव से सीखा है ,
शिक्षा-जगत की फुलवारी को 
मैंने अपने श्रम-सीकर से सींचा है । 
उम्र नहीं बाधा मेरे कर्म-पथ की ,
मंजिल को मैनें मुट्ठी में मींचा है । 

सोच 

जिंदगी का यह है तजुर्बा 
सोच से जीत और हार होती है ,
यह भी सच है ,
जिनकी सोच होती है ऊँची 
उन्हीं के गले में जीत की हार होती है । 

शिक्षक

दीपक सा कर्म है जिनका
माँ की जिनमें ऋजुता है,
सागर-सा विशाल हृदय जिनका
पिता की सहृदयता है ।
पीढ़ियों को पढ़ाया जिनने
अब भी जो कर्म-निरत हैं ।
ऐसे गुरुवर को संग पाकर
मन-मयूर हर्षित-पुलकित है । 

Monday, October 24, 2016

जिंदगी

       जिंदगी
जिंदगी फूल- सी है,
कुदरत की गोद में
खिलती है, मुस्कराती है,
खुशबू से फिजा को महकाती है,
और एक दिन बिखरकर,
बसुन्धरा की गोद में समाजाती है।

जिंदगी गंगा की कूल है,
मरु की तपती धूल है,
कोयल की कूक है,
चकवा-चकई की हूक है,
यह चिलचिलाती धूप है,
बरगद की मीठी छाँव है,
जिंदगी बाँसुरी बजाती सुबह है,
और
लोरी सुनाती साँझ है।

जिंदगी उमंग है,
देख सकते हैं, इसे,
गगन में उड़ते परिंदों में
धारा के विपरीत ,
चढ़ती मछलियों  के झुण्ड में,
वनों में , रमण करते मृग समूह में,
रण वाकुरों की आन- बान- शान में,
नटखट बच्चों की मुस्कान में,
खेत और खलिहान में,मचान में,
खेल के मैदान में, श्रम-सिपाहियो की तान में।








दीपावली

       दीपावली
दीवाली का रंग बदल गया,
मनाने का ढंग बदल गया,
बदल गए पैमाने
कुछ- कुछ
नजारा बदल गया है।

शाम होते ही
गोधूलि वेला में ,
मिट्टी के दिए
लबालब घी से भरे,
घर के द्वार पर,
पूजा के मंदिर में
गो शाला में
कुआँ- बावली के मुँडेर पर,
अपनी सुरभित आभा से
आलोकित कर,
तिमिर को हरते,
जगमग करते,
घी के सुगंध से
गृह मंदिर को आलोड़ित कर,
अपनी चिर- परिचित
मुस्कान विखेरते
अक्सर देखे जाते,
आज वह खो गया है,

पूजा की थाली सजातीं
मातृ शक्ति, भक्ति में अनुरक्त,
मुहूर्त के इंतजार में
द्वार और चौकी पर डालती
अल्पनाएं,
होतीं व्रत संयुक्त।
शंख- घड़ियाल और घंटी की धुन सुन
झांझ- मंजीरे की रुनझुन - रुनझुन,
सुन प्रफुल्लित हो उठता तन-मन।
मन्त्र के स्वर होते मुखर
हृदय के तार झंकृत कर
छड़ भर सुध- बुध विस्मृत कर
आनन्द की अनुभूति कराते,
रत जगा कर भक्ति में मदमाते
न जाने आज कहाँ खो गया है

टिमटिमाते दिए
न जाने कहाँ खोते जा रहे हैं,
चाइनीज बल्ब सर्वत्र
टिमटिमाते नजर आते है

हवन की खुशबू ,
अगर की गंध से
सारा जहाँ होता सुवासित ,
आज पटाको की चिरान्ध से
जीव का दम घुट रहा है।

होड़ सी लगी है
धनिकों में
बम- पटाको की लच्छी जलाने में,
सड़के अट जातीं
गलियाँ कुरूप हो जातीं,
पटाकों की रैपर सुतली - तागों से।

आसमान का रंग हो जाता बदरंग ,
दिन में भी सर्द रातो सी धुंध छा जाता,
पटाकों की शोर से,
छटपटाते ,
अबोध बच्चे, पक्षी
रोगियो का दिल धड़क जाता।

सभ्यता का शिखर जो चूमतेेे
भरते ज्ञान का दंभ
आज उनका
ज्ञान कहीं खो गया है,
बन गए भस्मासुर अनेक,
निज को
भस्म करने को है -उद्दत,
शांति और अमन छिन गया है।
दीवाली मनाने का पैमाना बदल गया है।




Saturday, March 7, 2015

होली

                🌻होली🌻
होली का नाम सुनते ही
रंग की
भंग की
मौज-मस्ती की
याद जेहन में दौड़ जाती है।
किन्तु
होली सिर्फ
रंग नहीं
भंग नहीं
मौज- मस्ती नहीं
कुछ और भी है।
होली उमंग है
निच्छल प्रेम की तरंग है,
सामाजिक समरसता,
भाई-चारा
और
सत्य विजय का
अदभुत -लाजबाव रंग है।
आइए
नए अंदाज से होली मनाएं,
गिले-शिकबे भूलकर
हिल-मिल कर
अन्तः के रंगो  के संग
रंग  घोलकर,
रंगारंग होली का पर्व मनाएं।।
                           नीलेश शुक्ल












Tuesday, November 12, 2013

धरती माता का भी ध्यान रखें

त्योहार क्यों आते हैं?
त्योहार क्यों मनाते हैं?
हमें त्योहार कैसे मनाना चाहिए?
शायद हम भूल गए हैं।
इसीलिए तो
होली में केमकिल से युक्त रंग का प्रयोग करते हैं।
दीपावली में पटाके चलाकर पयार्वरण को प्रदूषित करते हैं।
और अपने को अच्छा मानते हैं।
तर्क देते हैं ,
साल में एक बार त्योहार आता है,
एक दिन में-
कितना प्रदूषण हो जाएगा,
कौन सा पहाड़ टूट पड़ेगा,
बिना रंगों की होली,
बिना पटाकों की दीवाली,
क्या मनाई जा सकती है?
बात में दम है?

नहीं,
रंग ही खेलना हो तो
प्राकृतकि रंग का प्रयोग किया जा सकता है,
इससे हम और  हमारी धरती माता
दोनों सुरिक्षित रह सकते हैं।
जल और जमीन दूषित होने से बच सकते हैं।

दीपावली,
दीपों की वली अर्थात दीपों की माला
दीप जलाकर-
घर एवं बाहर को प्रकाशित कर सकते हैं,
पटाकों के जहरीले धुए से-
शोर से ,
प्रकृति को,
स्वयं को,
भावी पीढ़ी को,
बचा सकने में अपना योगदान कर सकते हैं।

चिन्तन करें,
मनन करें,
मेरे स्कूल के बच्चों के संकल्प के साथ जुड़ें,
पटाके न फोड़कर,
अपितु दीप जलाकर,
दीपावली मनाएगे।
व्यर्थ के कुतर्कों से अपने को बचाएगे।

यदि लक्ष्मी को प्रसन्न करना है
तो,
राम नाम मनि दीप धरु जीह देहरी द्वार!
तुलसी भीतर बहारों जौ चाह्सी उजियार!! 

Sunday, September 15, 2013

मानसून और किसान

मानसून और किसान 

मानसून को भी क्या कहें
वह शहर में बरसता है।
गाँव का किसान
एक बूँद पानी को तरसता है । ।
प्यासी धरती , भूखा किसान।
कैसे उपजाए गेंहू और धान ॥ 
सूख रहे खेतों में अनाज के पौधे
अगर कुछ नहीं सूखा , वह है किसानों का पसीना ।
भूखे बैल नाधे, हल चलाते,
किसान की मिट रही पहचान ।
मेघों की आँख मिचौली से ,
टूट गए उसके अरमान ।
अषाढ़ के आते वह बीज बोता ,
पानी न बरसने पर अपने किस्मत को रोता ।
बीते साल की तरह ,
मानसून उसे धोखा दिया है ।
आशा के दीप जला कर उसे कंगाल किया है।
वसुंधरा और किसान का नाता ,
शायद मानसून को नही भाता ।
नहीं , वह जरुर आता ,
उसे और उसकी धरती को नहलाता ।
प्यासी धरती और भूखा किसान ।
कैसे उपजाए वह गेहूँ और धान ॥

Wednesday, November 14, 2012

भारत की शान

भारत की शान और आन 

किसान हो या जवान


दोनों हैं भारत की शान


किसान करे मेहनत खेतों पर


और धरती का रूप सवारे ,


जवान करता चौकसी सीमा पर


दुश्मन को ललकारे ,


श्वेद किसान का लहू जवान का ,


जब मिलते होता नव राष्ट्र निर्माण |


किसान हो या जवान


दोनों हैं भारत की शान ॥ १ ॥ 


किसान का सम्मान


राष्ट्र का मान,


जवान का सम्मान


राष्ट्र की आन ,


जिस देश में हो इनका सम्मान


वही देश बनता महान ॥ २ ॥ 


Saturday, September 1, 2012

आज आरक्षण अर्थ हीन हो गया है

आज आरक्षण अर्थ हीन हो गया है ,
इसे नया अर्थ देना होगा ,
जिसे लाया गया था असमानता की खाई पाटने को,
आज वही सबसे बड़ी खाई का हेतु बन गया है,
आज आरक्षण एक भस्मासुर बन गया है ,
राजनीति के खिलाडियों का अस्त्र बन गया है।।

जाति से कोई गरीब नही होता ,
लोग गरीब होते हैं ,
लोग किसी भी जाति के हो सकते हैं ,
आरक्षण का लक्ष्य ही था-
गरीब, कमजोर, पिछडों को अगडोंके बराबर लाना,
भूखे पेट को भोजन, शिक्षा की ज्योति जलाना।
खेद है
आज देश में उससे एक गहरी खाई खुद  रही है ,
जाति और वर्ग के विषधर समाज को  विषाक्त कर रहे हैं ।
जो कभी अमृत था आज जहर बन गया है ,
आज आरक्षण एक भस्मासुर बन गया है ,
राजनीति के खिलाडियों का अस्त्र बन गया है।।

अब जागने की बारी है,
जरूरतमंद की जरूरतों को पूरा करने की बारी है ,
जाति के नाम से आरक्षण को ख़त्म कर
गरीबी को आरक्षण का आधार बनाने की बारी है।
 यदि देश को बचाना है तो
सबको शिक्षा सबको अवसर
के सिद्धांत को अपनाना होगा,
आज आरक्षण अर्थ हीन हो गया है ,
इसे नया अर्थ देना होगा ,




Friday, March 30, 2012

पर्यावरण को मत छेड़

पर्यावरण को मत छेड़ ,


परिणाम बुरा होगा


मेघ करेंगे आँख मिचौली ,


तेजाबी वर्षा होगी,


अकाल पड़ेंगे वर्षों -वर्षों तक


बसंत में पतझड़ होगा


पर्यावरण को मत छेड़ ,


परिणाम बुरा होगा ॥


तू रोगी होगा, होगा बहरा ,


तेरी संतति कभी बांध सकेगी सेहरा ,


होंगे वे लूले और लंगड़े,


कभी होंगे मोटे तगड़े ,


निज कृत्य का अंजाम बुरा होगा


पर्यावरण को मत छेड़ ,


परिणाम बुरा होगा


पृथ्वी की तपन बढेगी ,


पर्वतों -ध्रुवों की बर्फ गलेगी ,


उफनायेंगे जल सिन्धु ,


परिणाम प्रलय होगा


पर्यावरण को मत छेड़ ,


परिणाम बुरा होगा ॥


आयेंगे भूकंप ,फटेंगे ज्वालामुखी ,


होगा मृत्यु का तांडव नृत्य


स्वच्छ वायु , निर्मल जल को तरसेगा ,


ऐसा मत कर कुकृत


पर्यावरण को मत छेड़


परिणाम बुरा होगा ॥

Wednesday, March 7, 2012

होली के रंग

होली नाम है नई उमंग का।
होली पैगाम है खुशियों का
होली भंग है प्रेम और क्षेम का ।
होली जुबान है, मन में दबी भावनाओं का,
होली अवसर है, भूलों को सुधारने का , ग़मों को भुलानें का ।
होली यज्ञ कुण्डहै असत्य को हवन करने का ,
होली स्वयम्बर है सत्य को वरण करनें का ।
होली साल में एक बार आती है ,
मन को हुलसाती है ,
बचपन लौटाती  है ,
मन से मन को मिलाती है ,
इसे यूँ न बिताइए ,
होली उल्लास सहित मिलकर मनाइए ।


Saturday, June 5, 2010

बुढ़ापा

बुढापा 

पेट है मगर रोटी नहीं ,
बुढ़ापा एक बीमारी बन गई है
कोई काम नहीं देता,
जीवन एक पहेली बन गई है

मैले - कुचले फटे कपडे पहने,
भूख मिटाने की आस में,
कीचड़ में
कमल की जड़ की तलाश कर रही
  चिलचिलाती धूप में ,
  मैंने एक बूढी माँ को देखा
  मेरा रोम - रोम सिहर उठा

  जिन हाथों को
अब मात्र आशीर्वाद के लिए उठाना चाहिए,
वे कीचड़ से सने हैं ,
आखें नम और कंठ सूखा हुआ

ये कैसी प्रगति हम कर रहे हैं ?
एक ओर
कुत्ते की बर्थ डे पार्टी में
लाखों उड़ा देने वाले लोग,
दूसरी ओर
एक-एक रोटी के लिए तरसते लोग
ये कैसी व्यवस्था है?
 इसमें परिवर्तन होना चाहिए,
 बूढे -असहायों की मदद के लिए हाथ उठना चाहिए
  उन्हें प्यार के साथ दो वक्त की रोटी चाहिए