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जिंदगी

       जिंदगी जिंदगी फूल- सी है, कुदरत की गोद में खिलती है, मुस्कराती है, खुशबू से फिजा को महकाती है, और एक दिन बिखरकर, बसुन्धरा की ग...

Monday, October 24, 2016

जिंदगी

       जिंदगी
जिंदगी फूल- सी है,
कुदरत की गोद में
खिलती है, मुस्कराती है,
खुशबू से फिजा को महकाती है,
और एक दिन बिखरकर,
बसुन्धरा की गोद में समाजाती है।

जिंदगी गंगा की कूल है,
मरु की तपती धूल है,
कोयल की कूक है,
चकवा-चकई की हूक है,
यह चिलचिलाती धूप है,
बरगद की मीठी छाँव है,
जिंदगी बाँसुरी बजाती सुबह है,
और
लोरी सुनाती साँझ है।

जिंदगी उमंग है,
देख सकते हैं, इसे,
गगन में उड़ते परिंदों में
धारा के विपरीत ,
चढ़ती मछलियों  के झुण्ड में,
वनों में , रमण करते मृग समूह में,
रण वाकुरों की आन- बान- शान में,
नटखट बच्चों की मुस्कान में,
खेत और खलिहान में,मचान में,
खेल के मैदान में, श्रम-सिपाहियो की तान में।








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