🌟 बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास के लिए भी उपयोगी है- ध्यान
हम अपने बच्चों को खाना सिखाते हैं, चलना सिखाते हैं, पढ़ना - लिखना, खेलना-कूदना, नाचना-गाना, पेंटिंग-रंगोली आदि-आदि सिखाते हैं। इतना ही नहीं यदि बच्चे नहीं सीख़ पाते तो अलग से सिखाने के लिए शिक्षक भी रखते हैं। बच्चे पर अच्छे अंक लाने का मानसिक दबाव भी डालते हैं। उसे कई प्रकार के प्रलोभन भी देते हैं। टॉफी , वीडियोगेम, चाट खिलाने, साईकिल, मोटर साईकिल आदि खरीदकर देते हैं। यदि इसके बावजूद भी वह अच्छे अंक न ला पाएं तो उसे डांटते भी हैं।
अपने बच्चे का भविष्य बनाने के लिए क्या- नही करते। हम जो न बन सके या जो हम न कर सके उसे अपने बच्चे से कराने को सोचते हैं। उसे डॉक्टर,इंजीनियर, कलेक्टर या कोई बड़ा आफिसर बनाना चाहते हैं। लेकिन उसे अच्छा इंसान नहीं। हमारी अपेक्षा तले पिसकर रह जाता है और वह इंसान नहीं बन पाता।
उसमे मानवीय गुण दया, करुणा, सहिष्णुता, सेवा,परोपकार ,
आइए अब जरा विचार करें।
क्या इससे बच्चे का समग्र विकास होता है? क्या वह समाज के लिए उपयोगी है?
क्या पैसा कमाना ही शिक्षा का उद्देश्य है?
क्या बड़ा होने के बाद वह आपके अनुकूल व्यवहार करता है?
क्या उसमें मानवीय गुणों का सही विकास हुआ ?
क्या वह अंतहीन प्रतिस्पर्धा का एक अंग बनकर रह गया?
जीवन का परम लक्ष्य अपने को जानना, आत्म साक्षात्कार करना क्या इस प्रकार की शिक्षा से संभव है?
यदि उपरोक्त प्रश्नो का उत्तर ढूढ़ें तो हमें निराशा ही हाथ लगेगी।
लेकिन वे जो सिर्फ भौतिक सुख के प्रेमी हैं उन्हें मेरे विचार से असहमत होंना ही चाहिए।
किन्तु एक बात जो सत्य है जिससे हम दूर होते जा रहे है वह है अपना ज्ञान। ज्ञान, जिसे विवेकानंद , महर्षि अरविन्द जैसे मनीषियों ने हासिल कर जगत में अमर हो गए। कबीर,मीरा,जैसे अनपढ़ प्राप्त कर अमर हो गए।
कहने का तात्पर्य यह की पुस्तकीय ज्ञान से भौतिक सुख तो मिल सकता है किन्तु आध्यात्मिक नहीं।
भौतिक सुख बिना आध्यात्मिक सुख के नीरस है, व्यर्थ है, अनुपयोगी है।
अब प्रश्न उठता है कि हम क्या करें जिससे कि हमारे बच्चे जिंदगी के आपाधापी में विषम परिस्थितियों में भी हतास , निराश एवं तनावग्रस्त न हों?
इसके लिए जितनी जिम्मेदारी विद्यालयों की है
उससे कहीँ अधिक माता-पिता की है।
बचपन से ही बच्चों में मानवीय गुणों का विकास करना आवश्यक है। सर्वाधिक समय बच्चे अपने परिवार के साथ ही रहते हैं। इसलिए उनके प्रत्येक व्यवहार पर नजर माता-पिता को ही रखना चाहिए। उनमे अच्छी आदतों का विकास करना चाहिए।
उसके दोस्त कौन हैं? वह कब और क्यों उदास होता है? अधिकांश समय किन कार्यों में व्यतीत करता ? परिवार और समाज के सदस्यों के साथ उसका व्यवहार कैसा है?
आदि बातों का ध्यान रखना होगा।
बच्चों में अच्छे संस्कार डालने का सबसे सरल उपाय है- उसे प्रार्थना में भाग लेने के लिए प्रेरित करें। कुछ क्षण के लिए आँखें बंद कर मौन रहने का अभ्यास कराएँ। इससे एकाग्रता शक्ति का विकास तो होता ही है साथ ही उसमें आत्मशक्ति , अभय का भी विकास होता है।
अपने से बड़ों का सम्मान करना सिखाएं।उनसे आशीष प्राप्त करने के लिए दादा,दादी,पापा-मम्मी के चरण छूँनें की आदत का विकास करें।
इसके अतिरिक्त उसे घर में होने वाले आध्यात्मिक कार्यो में भाग लेने के लिए प्रेरित करें। क्योकि प्रत्येक मनुष्य के जन्म का मुख्य उद्देश्य आध्यात्मिक उन्नति करना ही होता है । यहाँ यह उल्लेखनीय है क़ि वे माता-पिता जो अपने बच्चों को धन कमाने के लिए आवश्यक तालीम मुहैया कराने के साथ-साथआध्यात्मिक उन्नति के अवसर भी उपलब्ध कराते हैं। वास्तव में वे ही अपने बच्चों के साथ न्याय करते हैं।
आध्यात्मिक उन्नति के विकास के लिए निश्चित स्थान, निश्चित समय और निश्चित अवधि तक नियमित ध्यान ही एक मात्र उपाय है जो स्वयं पर निर्भर करता है।
ध्यान वह माध्यम है जिससे हम अपने अंदर छुपी हुई शक्ति को जाग्रत कर अपना और औरों का कल्याण कर सकते हैं।
ध्यान की प्रक्रिया से मन शांत होने लगता है, मन शांत होने से तनाव अपने आप दूर हो जाता है।
ध्यान से मानसिक शक्ति का विकास होता है।मेधा शक्ति बढ़ती है।अतः हमें नियमित ध्यान करना चाहिए।
हम अपने बच्चों को खाना सिखाते हैं, चलना सिखाते हैं, पढ़ना - लिखना, खेलना-कूदना, नाचना-गाना, पेंटिंग-रंगोली आदि-आदि सिखाते हैं। इतना ही नहीं यदि बच्चे नहीं सीख़ पाते तो अलग से सिखाने के लिए शिक्षक भी रखते हैं। बच्चे पर अच्छे अंक लाने का मानसिक दबाव भी डालते हैं। उसे कई प्रकार के प्रलोभन भी देते हैं। टॉफी , वीडियोगेम, चाट खिलाने, साईकिल, मोटर साईकिल आदि खरीदकर देते हैं। यदि इसके बावजूद भी वह अच्छे अंक न ला पाएं तो उसे डांटते भी हैं।
अपने बच्चे का भविष्य बनाने के लिए क्या- नही करते। हम जो न बन सके या जो हम न कर सके उसे अपने बच्चे से कराने को सोचते हैं। उसे डॉक्टर,इंजीनियर, कलेक्टर या कोई बड़ा आफिसर बनाना चाहते हैं। लेकिन उसे अच्छा इंसान नहीं। हमारी अपेक्षा तले पिसकर रह जाता है और वह इंसान नहीं बन पाता।
उसमे मानवीय गुण दया, करुणा, सहिष्णुता, सेवा,परोपकार ,
आइए अब जरा विचार करें।
क्या इससे बच्चे का समग्र विकास होता है? क्या वह समाज के लिए उपयोगी है?
क्या पैसा कमाना ही शिक्षा का उद्देश्य है?
क्या बड़ा होने के बाद वह आपके अनुकूल व्यवहार करता है?
क्या उसमें मानवीय गुणों का सही विकास हुआ ?
क्या वह अंतहीन प्रतिस्पर्धा का एक अंग बनकर रह गया?
जीवन का परम लक्ष्य अपने को जानना, आत्म साक्षात्कार करना क्या इस प्रकार की शिक्षा से संभव है?
यदि उपरोक्त प्रश्नो का उत्तर ढूढ़ें तो हमें निराशा ही हाथ लगेगी।
लेकिन वे जो सिर्फ भौतिक सुख के प्रेमी हैं उन्हें मेरे विचार से असहमत होंना ही चाहिए।
किन्तु एक बात जो सत्य है जिससे हम दूर होते जा रहे है वह है अपना ज्ञान। ज्ञान, जिसे विवेकानंद , महर्षि अरविन्द जैसे मनीषियों ने हासिल कर जगत में अमर हो गए। कबीर,मीरा,जैसे अनपढ़ प्राप्त कर अमर हो गए।
कहने का तात्पर्य यह की पुस्तकीय ज्ञान से भौतिक सुख तो मिल सकता है किन्तु आध्यात्मिक नहीं।
भौतिक सुख बिना आध्यात्मिक सुख के नीरस है, व्यर्थ है, अनुपयोगी है।
अब प्रश्न उठता है कि हम क्या करें जिससे कि हमारे बच्चे जिंदगी के आपाधापी में विषम परिस्थितियों में भी हतास , निराश एवं तनावग्रस्त न हों?
इसके लिए जितनी जिम्मेदारी विद्यालयों की है
उससे कहीँ अधिक माता-पिता की है।
बचपन से ही बच्चों में मानवीय गुणों का विकास करना आवश्यक है। सर्वाधिक समय बच्चे अपने परिवार के साथ ही रहते हैं। इसलिए उनके प्रत्येक व्यवहार पर नजर माता-पिता को ही रखना चाहिए। उनमे अच्छी आदतों का विकास करना चाहिए।
उसके दोस्त कौन हैं? वह कब और क्यों उदास होता है? अधिकांश समय किन कार्यों में व्यतीत करता ? परिवार और समाज के सदस्यों के साथ उसका व्यवहार कैसा है?
आदि बातों का ध्यान रखना होगा।
बच्चों में अच्छे संस्कार डालने का सबसे सरल उपाय है- उसे प्रार्थना में भाग लेने के लिए प्रेरित करें। कुछ क्षण के लिए आँखें बंद कर मौन रहने का अभ्यास कराएँ। इससे एकाग्रता शक्ति का विकास तो होता ही है साथ ही उसमें आत्मशक्ति , अभय का भी विकास होता है।
अपने से बड़ों का सम्मान करना सिखाएं।उनसे आशीष प्राप्त करने के लिए दादा,दादी,पापा-मम्मी के चरण छूँनें की आदत का विकास करें।
इसके अतिरिक्त उसे घर में होने वाले आध्यात्मिक कार्यो में भाग लेने के लिए प्रेरित करें। क्योकि प्रत्येक मनुष्य के जन्म का मुख्य उद्देश्य आध्यात्मिक उन्नति करना ही होता है । यहाँ यह उल्लेखनीय है क़ि वे माता-पिता जो अपने बच्चों को धन कमाने के लिए आवश्यक तालीम मुहैया कराने के साथ-साथआध्यात्मिक उन्नति के अवसर भी उपलब्ध कराते हैं। वास्तव में वे ही अपने बच्चों के साथ न्याय करते हैं।
आध्यात्मिक उन्नति के विकास के लिए निश्चित स्थान, निश्चित समय और निश्चित अवधि तक नियमित ध्यान ही एक मात्र उपाय है जो स्वयं पर निर्भर करता है।
ध्यान वह माध्यम है जिससे हम अपने अंदर छुपी हुई शक्ति को जाग्रत कर अपना और औरों का कल्याण कर सकते हैं।
ध्यान की प्रक्रिया से मन शांत होने लगता है, मन शांत होने से तनाव अपने आप दूर हो जाता है।
ध्यान से मानसिक शक्ति का विकास होता है।मेधा शक्ति बढ़ती है।अतः हमें नियमित ध्यान करना चाहिए।