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       जिंदगी जिंदगी फूल- सी है, कुदरत की गोद में खिलती है, मुस्कराती है, खुशबू से फिजा को महकाती है, और एक दिन बिखरकर, बसुन्धरा की ग...

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Monday, October 24, 2016

चींटी

लोक कथा
एक चींटी थी। एक चीटा था। दोनों साथ-साथ रहते थे। एक दिन दोनों का मन बेर खाने का हुआ । चीटा बेर के पेड़ पर चढ़ गया और  मीठी पकी बेर खाने लगा। चींटी के लिए अधपकी खट्टी बेर नीचे गिरा देता। चींटी खट्टी बेर खा नहीं पा रही थी । उसने चींटे से कहा- चींटा ये तुम क्या कर रहे हो?खुद तो पकी बेर खा रहे हो और मेरे लिए कच्ची बेर गिरा रहे हो।
चींटा ने कहा तुम्हे ऐसा लगता है तो तुम भी पेड़ पर चढ़ जाओ और मीठी-मीठी बेर खाओ।
चींटी को गुस्सा आ गया और वह पेड़ पर मीठी बेर खाने के लिए चढ़ने लगी। कुछ दूर ही चढ़ी थी कि उसके पैर में बेर का कांटा चुभ गया। वह दर्द के कारण जोर से चिल्लाई। मर गई ! मेरे पैर में कांटा घुस गया है । मुझे बचाओ।
चींटा बेर खाना छोड़कर चीटी के पास तुरंत आया। उसने चींटी को अपने पीठ पर बिठा कर पेड़ के नीचे उतरा। चींटी दर्द के मारे कराह रही थी। चींटा कांटा निकालने की कोशिश किया किन्तु सफल नहीं हो पाया। चींटी का दर्द उससे देखा न जा पा रहा था। वह चींटी को अपने पीठ पर लादे कुछ सोचता हुआ आगे बढ़ा। उसे एक नाई आता दिखा । उसने नाई को आवाज दी- नाई भाई सुनो तो ! हमारी मदद कर दो । मेरी चींटी के पैर में कांटा घुस गया है। उसे बहुत दर्द हो रहा है । उसका दर्द देखकर मेरा मन दुखी हो रहा है। आप मेरे चींटी के पैर में घुसे काँटे को निकाल दो । मेरे और मेरी चींटी पर उपकार कर दो। नाई ने कहा- चींटा भाई ! चींटी के पैर बहुत नाजुक हैं, छोटे भी हैं। मेरे पास ऐसा कोई साधन नहीं है जिससे मैँ कांटा निकालूँ। एक नहन्नी (नाखून काटने का औजार) है । वह बड़ी है । यदि चींटी के पैर से  कांटा निकालूँगा और चींटी को कुछ हो गया तो मैं क्या करूँगा। नही, भाई तुम किसी और से कांटा निकलवा लो । मुझे जाने दो।
चींटी जोर-जोर से कराहने लगी । उसके आँखों में तर-तर आंसू बहने लगा। रोते-रोते वह बोली - चींटा ! मैं मर जाऊँगी। मुझे बचा लो।
यह दुनिया की सच्चाई है , कोई मरना नहीं चाहता। यह कोई नई बात नहीं थी।
नाई को चींटी पर तरस आ गया। वह कांटा
निकालने  के लिए तैयार हो गया। अपनी नहन्नी निकाली और कांटा  निकालने का प्रयास करने लगा। छोटी सी चींटी और उसके छोटे पैर। कांटा तो नहीं निकला, चीटी परलोक सिधार गई। चींटा को जब पता चला कि उसकी चींटी अब नहीं रही वह पागल सा हो गया। वह नाई से कहने लगा- चींटी दे या नहन्नी दे। नाई अपना पीछा छुड़ाने के लिए चींटे को अपनी नहन्नी दे कर वहॉं से चल दिया।
चींटा नहन्नी लेकर आगे बढ़ा। उसने देखा एक आदमी दाँत से मिट्टी खोद रहा है । उसे तरस आ गया। उसने मिट्टी खोदने वाले से कहा-  भाई दाँत से माटी (मिट्टी) काहे खोद रहे हो। लो मेरी नहन्नी ले लो और माटी खोदो।
कुम्हार ने कहा -तुम्हारी नहन्नी छोटी है, टूट जाएगी। चींटा  बार - बार कहने लगा - ले लो भैया | नहन्नी टूट जाएगी तो टूट जाने दो । कुम्हार चींटे से नहन्नी लेकर मिट्टी खोदना जैसे शुरू किया वैसे ही नहन्नी टूट गई। चीटा जोर-जोर से चिल्लाकर अपनी सही सलामत नहन्नी की मांग करने लगा। कहने लगा- नहन्नी दो या चुकारिया (कलश) दो.......। बेचारा कुम्हार चींटे को मिट्टी का एक छोटा सा बर्तन जो अभी पका नहीं था, देकर विदा किया।
           चींटा बड़े शान से उस बर्तन को लेकर आगे बढ़ा। वह क्या देखता है क़ि एक आदमी चलनी में बकरी का दूध दुह रहा है। सारा दूध जमीन में फ़ैल जा रहा था। चींटे से फिर नहीं देखा गया। उसने दूध दुहने वाले से कहा- अरे, रे यह क्या कर रहे हो? सारा दूध तो जमीन में फैल रहा है। लो मेरी चुकारिया ले लो इसमें दूध दुहो। तुम्हारी चुकरिया यदि टूट गई तो !
चींटा ने कहा- टूट जई ता टूट जाय दे। तुम्हार रोग-दोख लेई मोर लेई अउ चल देइ।
बकरी का दूध निकालने वाले ने सोचा ले लेता हूँ। उसने मिट्टी की चुकारिया ले कर दूध निकालने लगा। जैसे ही दूध निकाल कर चुकारिया को जमींन पर रखा वैसे ही वह फूट गई । सारा दूध जमींन में फ़ैल गया। जब चीटे
ने देखा कि उसकी चुकारिया टूट गई वह पसरने लगा। उचक -उचक कर जोर-जोर से चिल्लाने लगा - चूक्कु दे कि बोक्को दे..... चूक्कु दे बोक्को दे.........।
बकरी वाला अपना पीछा छुड़ाने के लिए उसे अपनी बकरी दे दिया।
चीटा बड़ी शान से बकरी को लेकर आगे बढ़ा। क्या देखता है कि एक बारात सामने से जा रही है। नई नवेली दुल्हन को पैदल ही लिए जा रहे थे। चीटा से न देखा गया। वह जोर से आवाज लगाया। अरे बरात बाले भइया रुको-रुको! उसकी आवाज सुनकर एक बूढ़ा बाराती बारात को रुकने के लिए बोला। बारात रुकी। तब तक चीटा वहां पहुँच गया। दम भरते हुए बोला-  नवा दुल्हिन का रेंगाउत कहे लए जात हो भाई!
बाराती बूढ़ा बोला- पालकी वाले बीमार हो गए । अब क्या करें। बहू को ले ही जाना है।
चीटा तपाक से चिरपरिचित उदारता को प्रदर्शित करते हुए बोला- भाई मेरी बकरी ले लो। दुल्हिन को इसमें बिठाकर ले जाओ।
बूढ़ा बाराती बोला- दुल्हन बैठेगी तो उसकी कमर टूट जाएगी,वह मर जाएगी।
चीटा ने कहा- मर जाएगी तो मर जाए। मेरा रोग-दोख लेगी , आपका लेगी और चली जाएगी।
चीटा के ऐसा कहने पर दुल्हन को बकरी पर बिठाया गया। जैसे ही दुल्हन बकरी पर बैठी, बकरी लड़खड़ा कर जमींन पर गिर गई। ऐसे गिरी की फिर न उठी।
चीटा दौड़कर बकरी की नब्ज देखी। बकरी तो भगवान को प्यारी हो चुकी थी।
चीटा जोर-जोर से छाती पीट-पीट कर कूदने लगा। कहने लगा मेरी बोक्को दो या दुल्ली दो।
बरातियों को आगे जाने नहीं दे रहा था। थक हार कर बूढ़े ने उसे दुल्हन को सौंप दी। सौंपने के पहले दुल्हन के कान पर चुपके से कुछ कहा।
चीटा बहुत खुश हुआ। वह आगे-आगे  और दुल्हन पीछे -पीछे। कुछ देर बाद घर पहुँचा। अपनी मां से मारे ख़ुशी के कहने लगा- आँगन लिपा दाई, चउक पूरा दाई। दुल्ली लाएहों।।
चीटा की माँ दुल्हन की आरती उतारी और उसे लेकर घर के अंदर गई।
दुल्हन तो चींटे से नाराज थी। वह मौके की तलाश में थी। एक दिन चींटे की माँ ने उसे धान कूटने को कहकर  किसी काम से पड़ोसन के यहाँ चली गई। इधर दुल्हन धान कूटने लगी। इतने में चीटा आया। और छप्पर में चढ़कर गाना गाने लगा।
चींटी दे नहन्ही लायों
नहन्नी दे दोहनी लायों
दोहनी दे बोक्को।
बोक्को दे दुल्ली,
देख दुलुरदुर मोर तमासा।
बार-बार इस गीत को दोहराने लगा।
नाचने लगा। अचानक छप्पर से नीचे गिरा।
वहीं पर दुल्हन धान कूट रही थी। वह काडी में जा गिरा और मूसल के नीचे आ कर मर गया।
दुल्हन वहां से भागकर अपने घर चली गई।
जैसे दुल्हिन के दिन  बहुरे
वैसे सबके बहुरे।
किसा रहा बुता गा।।