विशेष

जिंदगी

       जिंदगी जिंदगी फूल- सी है, कुदरत की गोद में खिलती है, मुस्कराती है, खुशबू से फिजा को महकाती है, और एक दिन बिखरकर, बसुन्धरा की ग...

Wednesday, February 1, 2017

प्रार्थना

      प्रार्थना 1

दे दे मेरे अधरों को ज्ञान स्वर


दे दे मेरे अधरों को ज्ञान स्वर,
यही मांगते हम तुमसे वर।
निर्मल विचारों की सृष्टि दे,
व्यवहार विद्या की वृष्टि दे,
पहचान लूँ अपने को मैं,
ऐसी सूक्ष्म दृष्टि दे।
चलूँ सत्य न्याय के मार्ग पर,
यही मांगते हम तुमसे वर।।
दे दे मेरे अधरों ..............।।

मरुस्थल में हों या मधुबन में हों,
मन किन्तु अनुशासन में हो।
प्रतिबिम्ब हर आदर्श का,
इस छोटे से जीवन में हो।
सत्य  की हो मेरी डगर,
यही मांगते हम तुमसे वर।
दे दे मेरे अधरों ..............।।

रहे बाती जैसा ये तन मेरा,
रहे तेल जैसा ये मन मेरा,
जलूँ और जग को प्रकाश दूँ,
दिए जैसा हो जीवन मेरा ।
बलिदान की हो मेरी डगर,
यही मांगते हम तुमसे वर ।।
दे दे मेरे अधरों को ज्ञान स्वर,
यही मांगते हम तुमसे वर।।


 प्रार्थना 2 

हे प्रभु आनन्द दाता 

हे प्रभु आनन्द दाता ज्ञान हमको दीजिए ,
शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिए ,
लीजिए हमको शरण में , हम सदाचारी बनें, 
ब्रम्हचारी धर्म -रक्षक वीर व्रत धारी बनें ॥ 
(पं. रामनरेश त्रिपाठी)

प्रार्थना 3

इतनी शक्ति हमें देना दाता

इतनी शक्ति हमें देना दाता,
मन का विश्वास कमजोर हो ना,
हम चलें नेक रस्ते पे हमसे,
भूलकर भी कोई भूल हो ना.....

हर तरफ जुल्म है बेबसी है,
सहमा-सहमा-सा हर आदमी है,
पाप का बोझ बढ़ता ही जाये,
जाने कैसे ये धरती थमी है,
बोझ ममता का तू ये उठा ले,
तेरी रचना का ये अंत हो ना..
हम चलें......

दूर अज्ञान को हों अँधेरे,
तू हमें ज्ञान की रोशनी दे,
हर बुराई से बचके रहे हम,
जितनी भी दे, भली जिंदगी दे,
बैर हो ना किसी का किसी से,
भावना मन में बदले की हो ना..
हम चलें.....

हम न सोंचें हमें क्या मिला है,
हम ये सोचें किया क्या है अर्पण,
फूल खुशियों के बाँटे सभी को,
सब का जीवन ही बन जाए मधुबन,
अपनी करुणा को जब तू बहा दे,
करदे पावन हर इक मन का कोना..
हम चलें.....

हम अँधेरे में हैं रोशनी दे,
खो ना दें खुद को ही दुश्मनी से,
हम सजा पाएँ अपने किए की,
मौत भी हो तो सह लें खुशी से,
कल जो गुजरा है फिर से ना गुजरे,
आनेवाला वो कल ऐसा हो ना...

हम चलें नेक रस्ते पे हमसे,
भूलकर भी कोई भूल हो ना
इतनी शक्ति हमें देना दाता,
मन का विश्वास कमजोर हो ना....


प्रार्थना 4


जय मातु जय जगदीश्वरी

जय मातु जय जगदीश्वरी,
जय आदि ज्योति सरस्वती।
कमला समान स्वरूप धारी,
हंस वाहन भगवती।।
माता तुम्हारी गोद में,
हम शीश रखते हैं सदा।
हम बालकों पर कर अनुग्रह,
बुध्दि दे माँ सर्वदा।।
प्रार्थना है मातु  वाणी,
शुद्ध वाणी को करो।
तेज से अपने हमारे,
लघु हृदय का तम हरो।।
दे शुभाशीर्वाद माता,
विघ्न बाधाएं हरो।
सुत जानकर अपने हमारी,
पूर्ण आशाएं करो।।
हममें बढ़े सद्भावनाएँ,
हम सदा चारी बनें।
सच्चे पुजारी मातृ भू के,
वीर व्रत धारी बने।
जय मातु जय जगदीश्वरी,
जय आदि ज्योति सरस्वती।।
 प्रार्थना 5
वह शक्ति हमें दो दयानिधे!
कर्तव्य मार्ग पर डट जावें।
पर सेवा पर उपकार में हम,
निज जीवन सफल बना जावें।।
हम दींन, दुखी, निबलों, बिकलों
के सेवक बन संताप हरें।
जो हैं अटके, भूले-भटके
उनको तारें, खुद तर जावें।
छल,दंभ, द्वेष, पाखण्ड, झूठ,
अन्याय से निश दिन दूर रहें।
जीवन ही शुध्द,सरल अपना,
शुचि,प्रेम सुधा बरसावें।
निज आन-मान, मर्यादा का
प्रभु ध्यान रहे अभिमान रहे।
जिस देश जाती में जन्म लिया,
बलिदान उसी पर हो जावें।
वह शक्ति हमें दो दया निधे,
कर्तव्य मार्ग पर डट जावें,
पर सेवा पर उपकार में
हम निज जीवन सफल बना जावें।।

 प्रार्थना 6

ब कोई नहीं आता , मेरे गुरुवर आते हैं --2
हर पल हर दिन गुरूजी मेरे साथ आते हैं ।
जब कोई --------
मेरी नइया चलती है, पतवार नहीं चलती --2
किसी और की अब मुझको दरकार नहीं होती --2
मैं डरता नहीं जग से गुरु साथ आते हैं ,
हर पल हर दिन गुरूजी साथ आते हैं ।
कोई याद करे इनको दुःख हल्का हो जाये ,
कोई भक्ति करे इनकी ये उनके हो जाएँ ,
ये बिन बोले सबकुछ  पहचान जाते हैं ।
हर पल  ---------
ये इतने बड़े होकर सबसे हैं प्यार करें ,
 भक्तों के दुःख पल में स्वीकार करें
हर भक्तों का कहना ये मान जाते हैं ।
हर पल हर -------------

प्रार्थना 7

हमको मन की शक्ति देना, मन विजय करें।
दूसरों की जय से पहले,खुद को जय करे।
मुश्किल पड़े तो हम पर इतना करम कर,
साथ दें तो धर्म का चलें तो धरम पर।
इतना हौसला रहे सच को कदम बढ़ें।
दूसरों की जय से पहले, खुद को जय करें।
भेदभाव अपने दिल से साफ कर सकें,
दूसरों से भूल हो तो माफ़ कर सकें।
इतना हौसला रहे बदी से हम बचें।
दूसरों की जय से पहले,खुद को जय करेँ।
हमको मन की शक्ति देना, मन विजय करें।





Monday, October 24, 2016

चींटी

लोक कथा
एक चींटी थी। एक चीटा था। दोनों साथ-साथ रहते थे। एक दिन दोनों का मन बेर खाने का हुआ । चीटा बेर के पेड़ पर चढ़ गया और  मीठी पकी बेर खाने लगा। चींटी के लिए अधपकी खट्टी बेर नीचे गिरा देता। चींटी खट्टी बेर खा नहीं पा रही थी । उसने चींटे से कहा- चींटा ये तुम क्या कर रहे हो?खुद तो पकी बेर खा रहे हो और मेरे लिए कच्ची बेर गिरा रहे हो।
चींटा ने कहा तुम्हे ऐसा लगता है तो तुम भी पेड़ पर चढ़ जाओ और मीठी-मीठी बेर खाओ।
चींटी को गुस्सा आ गया और वह पेड़ पर मीठी बेर खाने के लिए चढ़ने लगी। कुछ दूर ही चढ़ी थी कि उसके पैर में बेर का कांटा चुभ गया। वह दर्द के कारण जोर से चिल्लाई। मर गई ! मेरे पैर में कांटा घुस गया है । मुझे बचाओ।
चींटा बेर खाना छोड़कर चीटी के पास तुरंत आया। उसने चींटी को अपने पीठ पर बिठा कर पेड़ के नीचे उतरा। चींटी दर्द के मारे कराह रही थी। चींटा कांटा निकालने की कोशिश किया किन्तु सफल नहीं हो पाया। चींटी का दर्द उससे देखा न जा पा रहा था। वह चींटी को अपने पीठ पर लादे कुछ सोचता हुआ आगे बढ़ा। उसे एक नाई आता दिखा । उसने नाई को आवाज दी- नाई भाई सुनो तो ! हमारी मदद कर दो । मेरी चींटी के पैर में कांटा घुस गया है। उसे बहुत दर्द हो रहा है । उसका दर्द देखकर मेरा मन दुखी हो रहा है। आप मेरे चींटी के पैर में घुसे काँटे को निकाल दो । मेरे और मेरी चींटी पर उपकार कर दो। नाई ने कहा- चींटा भाई ! चींटी के पैर बहुत नाजुक हैं, छोटे भी हैं। मेरे पास ऐसा कोई साधन नहीं है जिससे मैँ कांटा निकालूँ। एक नहन्नी (नाखून काटने का औजार) है । वह बड़ी है । यदि चींटी के पैर से  कांटा निकालूँगा और चींटी को कुछ हो गया तो मैं क्या करूँगा। नही, भाई तुम किसी और से कांटा निकलवा लो । मुझे जाने दो।
चींटी जोर-जोर से कराहने लगी । उसके आँखों में तर-तर आंसू बहने लगा। रोते-रोते वह बोली - चींटा ! मैं मर जाऊँगी। मुझे बचा लो।
यह दुनिया की सच्चाई है , कोई मरना नहीं चाहता। यह कोई नई बात नहीं थी।
नाई को चींटी पर तरस आ गया। वह कांटा
निकालने  के लिए तैयार हो गया। अपनी नहन्नी निकाली और कांटा  निकालने का प्रयास करने लगा। छोटी सी चींटी और उसके छोटे पैर। कांटा तो नहीं निकला, चीटी परलोक सिधार गई। चींटा को जब पता चला कि उसकी चींटी अब नहीं रही वह पागल सा हो गया। वह नाई से कहने लगा- चींटी दे या नहन्नी दे। नाई अपना पीछा छुड़ाने के लिए चींटे को अपनी नहन्नी दे कर वहॉं से चल दिया।
चींटा नहन्नी लेकर आगे बढ़ा। उसने देखा एक आदमी दाँत से मिट्टी खोद रहा है । उसे तरस आ गया। उसने मिट्टी खोदने वाले से कहा-  भाई दाँत से माटी (मिट्टी) काहे खोद रहे हो। लो मेरी नहन्नी ले लो और माटी खोदो।
कुम्हार ने कहा -तुम्हारी नहन्नी छोटी है, टूट जाएगी। चींटा  बार - बार कहने लगा - ले लो भैया | नहन्नी टूट जाएगी तो टूट जाने दो । कुम्हार चींटे से नहन्नी लेकर मिट्टी खोदना जैसे शुरू किया वैसे ही नहन्नी टूट गई। चीटा जोर-जोर से चिल्लाकर अपनी सही सलामत नहन्नी की मांग करने लगा। कहने लगा- नहन्नी दो या चुकारिया (कलश) दो.......। बेचारा कुम्हार चींटे को मिट्टी का एक छोटा सा बर्तन जो अभी पका नहीं था, देकर विदा किया।
           चींटा बड़े शान से उस बर्तन को लेकर आगे बढ़ा। वह क्या देखता है क़ि एक आदमी चलनी में बकरी का दूध दुह रहा है। सारा दूध जमीन में फ़ैल जा रहा था। चींटे से फिर नहीं देखा गया। उसने दूध दुहने वाले से कहा- अरे, रे यह क्या कर रहे हो? सारा दूध तो जमीन में फैल रहा है। लो मेरी चुकारिया ले लो इसमें दूध दुहो। तुम्हारी चुकरिया यदि टूट गई तो !
चींटा ने कहा- टूट जई ता टूट जाय दे। तुम्हार रोग-दोख लेई मोर लेई अउ चल देइ।
बकरी का दूध निकालने वाले ने सोचा ले लेता हूँ। उसने मिट्टी की चुकारिया ले कर दूध निकालने लगा। जैसे ही दूध निकाल कर चुकारिया को जमींन पर रखा वैसे ही वह फूट गई । सारा दूध जमींन में फ़ैल गया। जब चीटे
ने देखा कि उसकी चुकारिया टूट गई वह पसरने लगा। उचक -उचक कर जोर-जोर से चिल्लाने लगा - चूक्कु दे कि बोक्को दे..... चूक्कु दे बोक्को दे.........।
बकरी वाला अपना पीछा छुड़ाने के लिए उसे अपनी बकरी दे दिया।
चीटा बड़ी शान से बकरी को लेकर आगे बढ़ा। क्या देखता है कि एक बारात सामने से जा रही है। नई नवेली दुल्हन को पैदल ही लिए जा रहे थे। चीटा से न देखा गया। वह जोर से आवाज लगाया। अरे बरात बाले भइया रुको-रुको! उसकी आवाज सुनकर एक बूढ़ा बाराती बारात को रुकने के लिए बोला। बारात रुकी। तब तक चीटा वहां पहुँच गया। दम भरते हुए बोला-  नवा दुल्हिन का रेंगाउत कहे लए जात हो भाई!
बाराती बूढ़ा बोला- पालकी वाले बीमार हो गए । अब क्या करें। बहू को ले ही जाना है।
चीटा तपाक से चिरपरिचित उदारता को प्रदर्शित करते हुए बोला- भाई मेरी बकरी ले लो। दुल्हिन को इसमें बिठाकर ले जाओ।
बूढ़ा बाराती बोला- दुल्हन बैठेगी तो उसकी कमर टूट जाएगी,वह मर जाएगी।
चीटा ने कहा- मर जाएगी तो मर जाए। मेरा रोग-दोख लेगी , आपका लेगी और चली जाएगी।
चीटा के ऐसा कहने पर दुल्हन को बकरी पर बिठाया गया। जैसे ही दुल्हन बकरी पर बैठी, बकरी लड़खड़ा कर जमींन पर गिर गई। ऐसे गिरी की फिर न उठी।
चीटा दौड़कर बकरी की नब्ज देखी। बकरी तो भगवान को प्यारी हो चुकी थी।
चीटा जोर-जोर से छाती पीट-पीट कर कूदने लगा। कहने लगा मेरी बोक्को दो या दुल्ली दो।
बरातियों को आगे जाने नहीं दे रहा था। थक हार कर बूढ़े ने उसे दुल्हन को सौंप दी। सौंपने के पहले दुल्हन के कान पर चुपके से कुछ कहा।
चीटा बहुत खुश हुआ। वह आगे-आगे  और दुल्हन पीछे -पीछे। कुछ देर बाद घर पहुँचा। अपनी मां से मारे ख़ुशी के कहने लगा- आँगन लिपा दाई, चउक पूरा दाई। दुल्ली लाएहों।।
चीटा की माँ दुल्हन की आरती उतारी और उसे लेकर घर के अंदर गई।
दुल्हन तो चींटे से नाराज थी। वह मौके की तलाश में थी। एक दिन चींटे की माँ ने उसे धान कूटने को कहकर  किसी काम से पड़ोसन के यहाँ चली गई। इधर दुल्हन धान कूटने लगी। इतने में चीटा आया। और छप्पर में चढ़कर गाना गाने लगा।
चींटी दे नहन्ही लायों
नहन्नी दे दोहनी लायों
दोहनी दे बोक्को।
बोक्को दे दुल्ली,
देख दुलुरदुर मोर तमासा।
बार-बार इस गीत को दोहराने लगा।
नाचने लगा। अचानक छप्पर से नीचे गिरा।
वहीं पर दुल्हन धान कूट रही थी। वह काडी में जा गिरा और मूसल के नीचे आ कर मर गया।
दुल्हन वहां से भागकर अपने घर चली गई।
जैसे दुल्हिन के दिन  बहुरे
वैसे सबके बहुरे।
किसा रहा बुता गा।।

जिंदगी

       जिंदगी
जिंदगी फूल- सी है,
कुदरत की गोद में
खिलती है, मुस्कराती है,
खुशबू से फिजा को महकाती है,
और एक दिन बिखरकर,
बसुन्धरा की गोद में समाजाती है।

जिंदगी गंगा की कूल है,
मरु की तपती धूल है,
कोयल की कूक है,
चकवा-चकई की हूक है,
यह चिलचिलाती धूप है,
बरगद की मीठी छाँव है,
जिंदगी बाँसुरी बजाती सुबह है,
और
लोरी सुनाती साँझ है।

जिंदगी उमंग है,
देख सकते हैं, इसे,
गगन में उड़ते परिंदों में
धारा के विपरीत ,
चढ़ती मछलियों  के झुण्ड में,
वनों में , रमण करते मृग समूह में,
रण वाकुरों की आन- बान- शान में,
नटखट बच्चों की मुस्कान में,
खेत और खलिहान में,मचान में,
खेल के मैदान में, श्रम-सिपाहियो की तान में।








तर्क

                             तर्क
"ढाई आखर तर्क का वरै सो वर होय।"

'तर्क' ढाई अक्षर का यह शब्द भी कमाल का है।  सच को झूठ बनाना हो या झूठ को सच, बस, इसका वरण करना होगा। शेष काम अपने आप लोग पूरा कर देंगे।
एक मिसाल प्रस्तुत कर रहा हूँ। यह सर्व विदित है , पटाकों से निकला धुँआ मानव जाति के लिए हानिकारक है, क्योंकि इसमें कई जहरीली गैसे जैसे  कार्बन डाई आक्साइड, सल्फर डाई आक्साइड, नाइट्रोजन डाई आक्साइड आदि  होती हैं। यह संपूर्ण वायुमंडल  को दूषित कर देती है। यह दमा और हृदय के रोगियो के लिए प्राण घातक है। अब, यह एक तर्क हुआ।
दूसरे तर्क का नमूना देखिए, एक दिन के पटाका फोड़ने से कौन पहाड़ टूट जाएगा। प्रतिदिन मोटर गाड़ियों , फैक्ट्रियों से इससे अधिक धुआँ वायुमंडल में छोड़ा जा रहा है। उससे तो किसी के पेट में दर्द नहीं होता। दीवाली में बच्चे दो-चार पटाके क्या फोड़ लिए, पर्यावरण के कथित रक्षक आसमान को सर में उठा लेते हैं। बेशक , इस तर्क में भी दम है।

इस प्रकार इन दोनों तर्कों के बीच लोग दो खेमों में बट जाते हैं । असल मुद्दा तर्क के भँवर में फसकर टकटकी लगाए , लोगों की ओर आशा के दीप जलाए , अपने और मानव जाति के अस्तित्व को बचाने के लिए संघर्ष करता रहता है।

अंततः तर्क के आसुरी अट्टहास और सुरी ठहाकों के शोर में मुद्दा अपना वजूद खो देता है।

दीपावली

       दीपावली
दीवाली का रंग बदल गया,
मनाने का ढंग बदल गया,
बदल गए पैमाने
कुछ- कुछ
नजारा बदल गया है।

शाम होते ही
गोधूलि वेला में ,
मिट्टी के दिए
लबालब घी से भरे,
घर के द्वार पर,
पूजा के मंदिर में
गो शाला में
कुआँ- बावली के मुँडेर पर,
अपनी सुरभित आभा से
आलोकित कर,
तिमिर को हरते,
जगमग करते,
घी के सुगंध से
गृह मंदिर को आलोड़ित कर,
अपनी चिर- परिचित
मुस्कान विखेरते
अक्सर देखे जाते,
आज वह खो गया है,

पूजा की थाली सजातीं
मातृ शक्ति, भक्ति में अनुरक्त,
मुहूर्त के इंतजार में
द्वार और चौकी पर डालती
अल्पनाएं,
होतीं व्रत संयुक्त।
शंख- घड़ियाल और घंटी की धुन सुन
झांझ- मंजीरे की रुनझुन - रुनझुन,
सुन प्रफुल्लित हो उठता तन-मन।
मन्त्र के स्वर होते मुखर
हृदय के तार झंकृत कर
छड़ भर सुध- बुध विस्मृत कर
आनन्द की अनुभूति कराते,
रत जगा कर भक्ति में मदमाते
न जाने आज कहाँ खो गया है

टिमटिमाते दिए
न जाने कहाँ खोते जा रहे हैं,
चाइनीज बल्ब सर्वत्र
टिमटिमाते नजर आते है

हवन की खुशबू ,
अगर की गंध से
सारा जहाँ होता सुवासित ,
आज पटाको की चिरान्ध से
जीव का दम घुट रहा है।

होड़ सी लगी है
धनिकों में
बम- पटाको की लच्छी जलाने में,
सड़के अट जातीं
गलियाँ कुरूप हो जातीं,
पटाकों की रैपर सुतली - तागों से।

आसमान का रंग हो जाता बदरंग ,
दिन में भी सर्द रातो सी धुंध छा जाता,
पटाकों की शोर से,
छटपटाते ,
अबोध बच्चे, पक्षी
रोगियो का दिल धड़क जाता।

सभ्यता का शिखर जो चूमतेेे
भरते ज्ञान का दंभ
आज उनका
ज्ञान कहीं खो गया है,
बन गए भस्मासुर अनेक,
निज को
भस्म करने को है -उद्दत,
शांति और अमन छिन गया है।
दीवाली मनाने का पैमाना बदल गया है।




Tuesday, May 17, 2016

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नाम

Monday, December 21, 2015

बच्चों के लिए ध्यान जरूरी

🌟 बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास के लिए भी उपयोगी है- ध्यान
हम अपने बच्चों को खाना सिखाते हैं, चलना सिखाते हैं, पढ़ना - लिखना, खेलना-कूदना, नाचना-गाना, पेंटिंग-रंगोली आदि-आदि  सिखाते हैं। इतना ही नहीं यदि बच्चे नहीं सीख़ पाते तो अलग से  सिखाने के लिए शिक्षक भी रखते हैं। बच्चे पर अच्छे अंक लाने का मानसिक दबाव भी डालते हैं। उसे कई प्रकार के प्रलोभन भी देते हैं। टॉफी , वीडियोगेम, चाट खिलाने, साईकिल, मोटर साईकिल आदि  खरीदकर देते हैं। यदि इसके बावजूद भी वह अच्छे अंक न ला पाएं तो उसे डांटते भी हैं।
अपने बच्चे का भविष्य बनाने के लिए क्या- नही करते। हम जो न बन सके या जो हम न कर सके उसे अपने बच्चे से कराने को सोचते हैं। उसे डॉक्टर,इंजीनियर, कलेक्टर या कोई बड़ा आफिसर बनाना चाहते हैं। लेकिन उसे अच्छा इंसान नहीं। हमारी अपेक्षा तले पिसकर रह जाता है और वह इंसान नहीं बन पाता।
उसमे मानवीय गुण दया, करुणा, सहिष्णुता, सेवा,परोपकार ,
आइए अब जरा विचार करें।
क्या इससे बच्चे का समग्र विकास होता है? क्या वह समाज के लिए उपयोगी है?
क्या पैसा कमाना ही शिक्षा का उद्देश्य है?
क्या बड़ा होने के बाद वह आपके अनुकूल व्यवहार करता है?
क्या उसमें मानवीय गुणों का सही विकास हुआ ?
क्या वह अंतहीन प्रतिस्पर्धा का एक अंग बनकर रह गया?
जीवन का परम लक्ष्य अपने को जानना, आत्म साक्षात्कार करना क्या इस प्रकार की शिक्षा से संभव है?
यदि उपरोक्त प्रश्नो का उत्तर  ढूढ़ें तो हमें निराशा  ही हाथ लगेगी।
लेकिन वे जो सिर्फ भौतिक सुख के प्रेमी हैं उन्हें मेरे विचार से असहमत होंना ही चाहिए।
किन्तु एक बात जो सत्य है जिससे हम दूर होते जा रहे है वह है अपना ज्ञान। ज्ञान, जिसे विवेकानंद , महर्षि अरविन्द जैसे मनीषियों ने हासिल कर जगत में अमर हो गए।  कबीर,मीरा,जैसे अनपढ़ प्राप्त कर अमर हो गए।
कहने का तात्पर्य यह की पुस्तकीय ज्ञान से भौतिक सुख  तो मिल सकता है किन्तु आध्यात्मिक नहीं।
भौतिक सुख बिना आध्यात्मिक सुख के नीरस है, व्यर्थ है, अनुपयोगी है।
अब प्रश्न उठता है कि हम क्या करें जिससे कि हमारे बच्चे जिंदगी के आपाधापी में विषम परिस्थितियों में भी हतास , निराश एवं तनावग्रस्त न हों?
इसके लिए जितनी जिम्मेदारी विद्यालयों की है
उससे कहीँ अधिक माता-पिता की है।
बचपन से ही बच्चों में मानवीय गुणों का विकास करना आवश्यक है। सर्वाधिक समय बच्चे अपने परिवार के साथ ही रहते हैं। इसलिए उनके प्रत्येक व्यवहार पर नजर  माता-पिता को ही रखना चाहिए। उनमे अच्छी आदतों का विकास करना चाहिए।
उसके दोस्त कौन हैं? वह कब और क्यों उदास होता है? अधिकांश समय किन कार्यों में व्यतीत करता ? परिवार  और समाज के सदस्यों के साथ उसका व्यवहार कैसा है?
आदि बातों का ध्यान रखना होगा।
बच्चों में अच्छे संस्कार डालने का सबसे सरल उपाय है- उसे प्रार्थना में भाग लेने के लिए प्रेरित करें। कुछ क्षण के लिए आँखें बंद कर मौन रहने का अभ्यास कराएँ। इससे एकाग्रता शक्ति का विकास तो होता ही है साथ ही उसमें आत्मशक्ति , अभय का भी विकास होता है।
अपने से बड़ों का सम्मान करना सिखाएं।उनसे आशीष प्राप्त करने के लिए दादा,दादी,पापा-मम्मी के चरण छूँनें की आदत का विकास करें।
इसके अतिरिक्त उसे घर में होने वाले आध्यात्मिक कार्यो में भाग लेने के लिए प्रेरित करें। क्योकि प्रत्येक मनुष्य के जन्म का मुख्य उद्देश्य आध्यात्मिक उन्नति करना ही होता है । यहाँ यह उल्लेखनीय है क़ि वे माता-पिता जो अपने बच्चों को धन कमाने के लिए आवश्यक तालीम मुहैया कराने के साथ-साथआध्यात्मिक उन्नति के अवसर भी उपलब्ध कराते हैं। वास्तव में वे ही अपने बच्चों के साथ न्याय करते हैं।
आध्यात्मिक उन्नति के विकास के लिए निश्चित स्थान, निश्चित समय और निश्चित अवधि तक नियमित ध्यान ही एक मात्र उपाय है जो स्वयं पर निर्भर करता है।
ध्यान  वह माध्यम है जिससे हम अपने अंदर छुपी हुई शक्ति को जाग्रत कर अपना और औरों का कल्याण कर सकते हैं।
ध्यान की प्रक्रिया से मन शांत होने लगता है, मन शांत होने से तनाव अपने आप दूर हो जाता है।
ध्यान से मानसिक शक्ति का विकास होता है।मेधा शक्ति बढ़ती है।अतः हमें नियमित ध्यान करना चाहिए।