विशेष

जिंदगी

       जिंदगी जिंदगी फूल- सी है, कुदरत की गोद में खिलती है, मुस्कराती है, खुशबू से फिजा को महकाती है, और एक दिन बिखरकर, बसुन्धरा की ग...

Saturday, June 5, 2010

बुढ़ापा

बुढापा 

पेट है मगर रोटी नहीं ,
बुढ़ापा एक बीमारी बन गई है
कोई काम नहीं देता,
जीवन एक पहेली बन गई है

मैले - कुचले फटे कपडे पहने,
भूख मिटाने की आस में,
कीचड़ में
कमल की जड़ की तलाश कर रही
  चिलचिलाती धूप में ,
  मैंने एक बूढी माँ को देखा
  मेरा रोम - रोम सिहर उठा

  जिन हाथों को
अब मात्र आशीर्वाद के लिए उठाना चाहिए,
वे कीचड़ से सने हैं ,
आखें नम और कंठ सूखा हुआ

ये कैसी प्रगति हम कर रहे हैं ?
एक ओर
कुत्ते की बर्थ डे पार्टी में
लाखों उड़ा देने वाले लोग,
दूसरी ओर
एक-एक रोटी के लिए तरसते लोग
ये कैसी व्यवस्था है?
 इसमें परिवर्तन होना चाहिए,
 बूढे -असहायों की मदद के लिए हाथ उठना चाहिए
  उन्हें प्यार के साथ दो वक्त की रोटी चाहिए

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