विशेष

जिंदगी

       जिंदगी जिंदगी फूल- सी है, कुदरत की गोद में खिलती है, मुस्कराती है, खुशबू से फिजा को महकाती है, और एक दिन बिखरकर, बसुन्धरा की ग...

Saturday, March 7, 2015

खुद सुधारो, जग सुधरेगा

         🌺खुद सुधरो, जग सुधरेगा🌺
मनुष्य स्वयं से अधिक दूसरों के प्रति सजग रहता है। स्वयं को देखने की उसे फुरसत नहीं होती। ढेर सारी बुराइयां अपने अंदर होती है, किन्तु वह हमें दिखाई नहीं देतीं। कबीरदास जी ने ठीक ही कहा है-
बुरा जो  देखन मैं चला, बुरा न दीखा कोय।
जो दिल खोजा आपनो, मुझसा बुरा न कोय।।
इसलिए यदि जग को सुंदर बनाना है, बुराइयों से मुक्त करना है, सुधारना है तो यह नेक काम अपने से शुरू करो।
व्यक्ति से परिवार, परिवार से समाज , समाज से राष्ट्र का निर्माण होता है।
एक बात और
इस विचार पर गौर करें
एक चोर चोरी न करने को कहे।
एक शराबी शराब न पीने को कहे,
एक झूठा-लंपट सत्य बोलने का उपदेश दे,
खुद तो लेटकर टीवी देखें और बच्चे से कहें क़ि लेटकर टीवी देखना अच्छा नहीं,
घर का कुढ़ा- कचरा खुद तो सड़क पर फेकें और दूसरों से अपेक्षा करें , वे कूड़ेदान में फेकें,
क्या कोई भी इनकी बात सुनने को तैयार होगा ? मुझे तो नहीं लगता , आप अपनी जानो।
आज के परिवेश में यदि कुछ बदलाव लाना चाहते हैं, तो स्वयं को बदलो , अपने कर्म में अपनी वाणी को उतारो।
आज उपदेशकों की भरमार है, करने वाले कम हैं । इसलिए कबीरदास जी की इस वाणी को अपने कर्म  के धरातल पर अवतीर्ण करने की आवश्यकता है-
कहता तो बहुत मिल्या, करता मिला न कोय।
कहता बहि जान दो, करता संग होय।।

No comments:

Post a Comment