मृत्यु आत्मोत्सव है।
उसके आलिंगन से क्या डरना ?
जीवन के रण में निर्भय होकर ,
कर्म-पथ पर आगे बढ़ते रहना।
प्रकृति के कण-कण में गुम्फित है ,
जय-पराजय की संघर्षी गाथा।
जो संघर्ष करता है वही,
विजय श्री को वरण कर पाता।
कानन में मृग सतर्क किन्तु निर्भय
चरते ,कुलाँचे भरते, विचरण करते हैं।
आसमान पर नाना विहग, ऊँचाई मापते ,
मैदानों से दुर्गम हिमालय तक
बिना थके, बिना डरे , उल्लास से उड़ानें भरते हैं।
इस धरती पर जो भी आया,
उसका जाना निश्चित है।
इस कडुवे सच से
क्या कोई वचित है ?
उठो , बढ़ो आगे मंजिल है ,
मृत्यु भय से कदम न पीछे करना,
मृत्यु आत्मोत्सव है ,
उसके आलिंगन से क्या डरना ?
उसके आलिंगन से क्या डरना ?
जीवन के रण में निर्भय होकर ,
कर्म-पथ पर आगे बढ़ते रहना।
प्रकृति के कण-कण में गुम्फित है ,
जय-पराजय की संघर्षी गाथा।
जो संघर्ष करता है वही,
विजय श्री को वरण कर पाता।
कानन में मृग सतर्क किन्तु निर्भय
चरते ,कुलाँचे भरते, विचरण करते हैं।
आसमान पर नाना विहग, ऊँचाई मापते ,
मैदानों से दुर्गम हिमालय तक
बिना थके, बिना डरे , उल्लास से उड़ानें भरते हैं।
इस धरती पर जो भी आया,
उसका जाना निश्चित है।
इस कडुवे सच से
क्या कोई वचित है ?
उठो , बढ़ो आगे मंजिल है ,
मृत्यु भय से कदम न पीछे करना,
मृत्यु आत्मोत्सव है ,
उसके आलिंगन से क्या डरना ?
अति सुंदर ।
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