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जिंदगी

       जिंदगी जिंदगी फूल- सी है, कुदरत की गोद में खिलती है, मुस्कराती है, खुशबू से फिजा को महकाती है, और एक दिन बिखरकर, बसुन्धरा की ग...

Saturday, September 1, 2012

आज आरक्षण अर्थ हीन हो गया है

आज आरक्षण अर्थ हीन हो गया है ,
इसे नया अर्थ देना होगा ,
जिसे लाया गया था असमानता की खाई पाटने को,
आज वही सबसे बड़ी खाई का हेतु बन गया है,
आज आरक्षण एक भस्मासुर बन गया है ,
राजनीति के खिलाडियों का अस्त्र बन गया है।।

जाति से कोई गरीब नही होता ,
लोग गरीब होते हैं ,
लोग किसी भी जाति के हो सकते हैं ,
आरक्षण का लक्ष्य ही था-
गरीब, कमजोर, पिछडों को अगडोंके बराबर लाना,
भूखे पेट को भोजन, शिक्षा की ज्योति जलाना।
खेद है
आज देश में उससे एक गहरी खाई खुद  रही है ,
जाति और वर्ग के विषधर समाज को  विषाक्त कर रहे हैं ।
जो कभी अमृत था आज जहर बन गया है ,
आज आरक्षण एक भस्मासुर बन गया है ,
राजनीति के खिलाडियों का अस्त्र बन गया है।।

अब जागने की बारी है,
जरूरतमंद की जरूरतों को पूरा करने की बारी है ,
जाति के नाम से आरक्षण को ख़त्म कर
गरीबी को आरक्षण का आधार बनाने की बारी है।
 यदि देश को बचाना है तो
सबको शिक्षा सबको अवसर
के सिद्धांत को अपनाना होगा,
आज आरक्षण अर्थ हीन हो गया है ,
इसे नया अर्थ देना होगा ,




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