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जिंदगी

       जिंदगी जिंदगी फूल- सी है, कुदरत की गोद में खिलती है, मुस्कराती है, खुशबू से फिजा को महकाती है, और एक दिन बिखरकर, बसुन्धरा की ग...

Sunday, September 15, 2013

मानसून और किसान

मानसून और किसान 

मानसून को भी क्या कहें
वह शहर में बरसता है।
गाँव का किसान
एक बूँद पानी को तरसता है । ।
प्यासी धरती , भूखा किसान।
कैसे उपजाए गेंहू और धान ॥ 
सूख रहे खेतों में अनाज के पौधे
अगर कुछ नहीं सूखा , वह है किसानों का पसीना ।
भूखे बैल नाधे, हल चलाते,
किसान की मिट रही पहचान ।
मेघों की आँख मिचौली से ,
टूट गए उसके अरमान ।
अषाढ़ के आते वह बीज बोता ,
पानी न बरसने पर अपने किस्मत को रोता ।
बीते साल की तरह ,
मानसून उसे धोखा दिया है ।
आशा के दीप जला कर उसे कंगाल किया है।
वसुंधरा और किसान का नाता ,
शायद मानसून को नही भाता ।
नहीं , वह जरुर आता ,
उसे और उसकी धरती को नहलाता ।
प्यासी धरती और भूखा किसान ।
कैसे उपजाए वह गेहूँ और धान ॥

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