🌻मार्ग🌼
प्रत्येक जीव के पास दो मार्ग हैं- श्रेय और हेय।
यह उस जीव पर निर्भर करता है कि वह कौन सा मार्ग चुनता है। आइए जानें इन दोनों मार्गों की क्या विशेषताएं हैं।
🌞 श्रेय- यह जीव को ब्रम्ह से मिलन कराने का मार्ग है। निर्भय का मार्ग है। सत्य अनुसन्धान का मार्ग है। आत्म -साक्षात्कार का मार्ग है। जीव को जीवन-मरण के चक्र से बचाने का मार्ग है। मृत्यु के भय से मुक्ति का मार्ग है। यह योग का मार्ग है। योग अर्थात अपनी ओर वापस लौटने का मार्ग है। इस मार्ग को चुनकर जीव आत्मोन्नति कर सकता है। क्योंकि यह प्रकाश का मार्ग है । इस मार्ग में शांति है। कभी समाप्त न होने वाला सुख है।
☀हेय- यह जीव को जगत में उलझाने का मार्ग है। पतन का मार्ग है। जीव अपने से दूर होता चला जाता है। यह भोग का मार्ग है। इस मार्ग में क्षणिक सुख है। दुखों का अंतहीन सागर है। भोग में संलिप्त हो जीव अपने जन्म के कार्य कारण और परिणाम को विस्मृत कर देता है। अंतहीन दुःख के सागर में हिचकोलें खाता मृत्यु के काल गाल में समा जाता है। जीव जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त नहीं हो पाता।
इंद्रिय सुख की लालसा में अपना संपूर्ण जीवन लगा देता है। अंत में उसके हाथ भय , निराशा, पश्चाताप ही आता है। ..............
नीलेश शुक्ल
प्रत्येक जीव के पास दो मार्ग हैं- श्रेय और हेय।
यह उस जीव पर निर्भर करता है कि वह कौन सा मार्ग चुनता है। आइए जानें इन दोनों मार्गों की क्या विशेषताएं हैं।
🌞 श्रेय- यह जीव को ब्रम्ह से मिलन कराने का मार्ग है। निर्भय का मार्ग है। सत्य अनुसन्धान का मार्ग है। आत्म -साक्षात्कार का मार्ग है। जीव को जीवन-मरण के चक्र से बचाने का मार्ग है। मृत्यु के भय से मुक्ति का मार्ग है। यह योग का मार्ग है। योग अर्थात अपनी ओर वापस लौटने का मार्ग है। इस मार्ग को चुनकर जीव आत्मोन्नति कर सकता है। क्योंकि यह प्रकाश का मार्ग है । इस मार्ग में शांति है। कभी समाप्त न होने वाला सुख है।
☀हेय- यह जीव को जगत में उलझाने का मार्ग है। पतन का मार्ग है। जीव अपने से दूर होता चला जाता है। यह भोग का मार्ग है। इस मार्ग में क्षणिक सुख है। दुखों का अंतहीन सागर है। भोग में संलिप्त हो जीव अपने जन्म के कार्य कारण और परिणाम को विस्मृत कर देता है। अंतहीन दुःख के सागर में हिचकोलें खाता मृत्यु के काल गाल में समा जाता है। जीव जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त नहीं हो पाता।
इंद्रिय सुख की लालसा में अपना संपूर्ण जीवन लगा देता है। अंत में उसके हाथ भय , निराशा, पश्चाताप ही आता है। ..............
नीलेश शुक्ल
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